\*\* शुकर (कृतज्ञता) – नेमतों की कद्र और अल्लाह की मोहब्बत का रास्ता\*\*
**शुकर (शुक्रगुज़ारी) का महत्व कुरआन और सही हदीसों की रौशनी में**
---
### भूमिका
शुकर यानी शुक्रगुज़ारी, एक ऐसी इबादत है जो दिल से शुरू होती है और ज़ुबान और अमल तक पहुँचती है। यह इंसान को नेमतों की क़द्र सिखाती है और उसे अल्लाह की ओर झुकाती है। शुकर करने वाला बंदा अल्लाह की रहमतों का हक़दार बनता है और उसकी नेमतों में इज़ाफा होता है।
---
### कुरआनी आयतें शुकर के बारे में
> **“अगर तुम शुकर करोगे तो मैं तुम्हें और दूँगा।”** – (सूरह इब्राहीम, आयत 7)
> **“अल्लाह को पसंद है कि उसके बंदे उसके नेमतों पर शुकर करें।”** – (सूरह अल-बक़रा, आयत 152)
> **“बहुत कम लोग ही मेरे बंदों में शुक्रगुज़ार होते हैं।”** – (सूरह सबा, आयत 13)
---
### सही हदीसें शुकर के बारे में
> रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
> **“जिसे खाना मिला और उसने कहा – ‘अल्लाह का शुकर है जिसने मुझे ये खाना दिया और मुझे इसमें कोई ताक़लीफ़ नहीं दी’ – तो उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।”** – (तिर्मिज़ी, हदीस: 3458)
> **“देखो उनसे जो तुमसे नीचे हैं, और उनसे मत देखो जो ऊपर हैं, यह तुम्हारे लिए बेहतर है ताकि तुम अल्लाह की नेमत को कम न समझो।”** – (मुस्लिम, हदीस: 2963)
> **“मोमिन का हाल भी अजीब है – अगर उसे नेमत मिले तो शुकर करता है, और अगर तकलीफ़ हो तो सब्र करता है, और दोनों में ही उसके लिए भलाई है।”** – (मुस्लिम, हदीस: 2999)
---
### शुकर के प्रकार
* **दिल से शुकर** – नेमत की पहचान और क़द्र
* **ज़ुबान से शुकर** – अल्फ़ाज़ से तारीफ़ और शुक्रिया
* **अमल से शुकर** – नेमतों का सही इस्तेमाल करके अल्लाह की आज्ञा मानना
---
### शुकर के फायदे
* नेमतों में बरकत और इज़ाफा
* अल्लाह की मोहब्बत
* तक़वा में वृद्धि
* गुनाहों की माफी
* दुनिया और आख़िरत में कामयाबी
---
### शुकर न करने की हानि
* नेमतों का छिन जाना
* अल्लाह की नाराज़गी
* दिल की सख़्ती
> **“अगर तुम नाशुक्र बनोगे तो मेरा अज़ाब बहुत सख़्त है।”** – (सूरह इब्राहीम, आयत 7)
---
### निष्कर्ष
शुकर एक मोमिन की पहचान है। जो इंसान हर हाल में शुकर करता है, वह अल्लाह के क़रीब होता है। हमें चाहिए कि हम हर नेमत – चाहे छोटी हो या बड़ी – पर अल्लाह का शुकर अदा करें और उसे अपने अमल से साबित करें। यही सच्ची बंदगी और नेमतों का हिफाज़त करने का रास्ता है।
---
📖 **स्रोत:**
* कुरआन मजीद:
* सूरह इब्राहीम (7)
* सूरह अल-बक़रा (152)
* सूरह सबा (13)
* सही हदीस:
* तिर्मिज़ी (हदीस: 3458)
* मुस्लिम (हदीस: 2963, 2999)